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हाँ, मैं शून्य हूँ

निहितार्थ
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हाँ, मैं शून्य हूँ

हाँ,मैं शून्य हूँ
शून्य के मायने कुछ भी नहीं
न तो इसका मान है और न ही सम्मान
शून्य को प्रतिष्ठा मिलती है गणित और विज्ञान में
शून्य यद्यपि कि अस्तित्वहीन माना जाता है.
शून्य इतना निरीह भी नहीं है
इसका एक महाप्रतापी रूप भी है
किसी अन्य के संपर्क में आने पर यह उसेभी पूरी तरह भस्मीभूत कर के
आत्मसात कर लेता है
शून्य कल्पना की चीज़ है
शून्य अस्तित्वहीन है
क्या जो अस्तित्वहीन है
वही शून्य है
सारी अस्तित्वहीन चीज़ें
शून्य नहीं होती हैं
शून्य का कोई मूल्य नहीं होता है
शून्य को पहचानना बहुत आसान है,
क्योंकि वह होता ही नहीं है.
जो होता ही नहीं उसे ढूंढने का औचित्य भी क्या
तो फिर क्या, जो होता ही नहीं है वही शून्य है
शून्य होता है और होता भी नहीं
तो फिर क्या शून्य ” स्टीफन हॉकिंग ‘ के
फ़िज़िक्स के ” ब्लैक होल ” है जिसके बारे में स्वयं ” हाकिन्स ” भी नहीं समझ पाए
जिसे न तो नकारा ही जा सकता है और न साबित किया जा सकता ऐ
यह पता नहीं शून्य का आविष्कार किसने
या यह ब्रम्हांड की उत्पत्ति के फ़िज़िक्स के कुछ सिद्धांतों की तरह ” स्वयम्भुव ( Self created ) है
शून्य अनादि जिसके प्रारम्भ का पता नहीं और
अनंत है, जिसके अंत का पता नहीं है.
शून्य क्या ” कर्ता ” का स्वरुप है
शून्य कुछ भी नहीं और सब कुछ है
शून्य एक गूढ़ रहस्य है

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