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वेस्टलैंड हेलीकाप्टर सौदे में घूस का आदान प्रदान

निहितार्थ
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वेस्टलैंड हेलीकाप्टर सौदे में घूस का आदान प्रदान

बोफोर्स गन की खरीद के समय ऐसा पता लगा कि रक्षा के सभी सौदों में घूस ली और दी जाती है. जो घूस देता है वही आर्डर पाता है. इसके पहले हम सभी इस बात से अज्ञान थे. बोफोर्स की खरीद में घोटाले का सवाल पार्लियामेंट में औ सभी स्तरों पर उठाया गया. संसदीय समिति ने भी जाँच की लेकिन नतीजा सिफर का सिफर ही रहा. यह तो निश्चित था कि घूस दी गई है. घूस लेने वाले इतने चालाक और शक्तिशाली थे की आखिर तक उनकी पहचान नहीं हो सकी. वेस्टलैंड हेलीकाप्टर की खरीद में भी लगता हैं की इतिहास अपने को दोहराने वाला है. इटली में जिन लोगों ने आर्डर पाने के लिए घूस दिया . वह पकडे गए और हवालात की हवा खा रहे हैं. इटली की हाई कोर्ट के मुकदमें के जजमेंट में घूस लेने वालों में कुछ भारतीयों का नाम भी आया. हेलीकाप्टर सौदे में मुख्य मुद्दा है खरीद में घूस का लिया और दिया जाना. विडम्बना है की इटली में घूस देने वालों को सजा भी हो गई . हमारे देश में घूस लेने वाले सीना चौड़ा करके निडर घूम रहे हैं. मुख्य मुद्दा है कि घूस किसने लिया. इस पर कोई कुछ नहीं बोलता है. लगता है सब को सांप संघ गया हो. इटली की हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में इस डील में भारत के जिन लोगों का नाम शामिल किया है वह देश के शीर्ष नेता हैं. ऐसा आभास होता है कि राजनीतिज्ञ मीडिया के सहयोग से इस प्रकरण को तरह तरह से भटकाने की कोशिश कर रहेः हैं. कभी इस बात पर विवाद उठाया जाता है कि शासक दाल ने डील को कैंसिल किया. नेता विपक्ष राजयसभा ने इस आशय का दावा किया कि उनकी पार्टी की सरकार ने इस आर्डर को निरस्त किया और इस कंपनी को काली सूची में डाला. यह बाद में झूठ निकला। बाद में पता लगा कि एन डी ए की सरकार ने आकर इस कंपनी को काली सूची में डाला . कहने का मतलब है झूठ पर झूठ झूठ पर झूठ. हमारे राजनीतिज्ञों को ज़रा भी शर्म नहीं है कि उन्होंने भारत जैसे महानं देश का नामं मिट्टी में मिला दिया है.
मीडिया की भूमिका भी संदेहास्पद है. कोई मीडियाकर्मी इस बात पर जोर नहीं दे रहा है कि वो कौन लोग हैं जिन्होनें घूस लिया है. मीडिया का एक वर्ग इस घोटाले को दबाने की कोशिश कर रहा है. टी वी पर पैनल चर्चा के दौरान मीडिया के व्यवहार से लगता है कि वे भी घूसखोरों के समर्थन में खड़े हैं. इनमें कुछ तो आसानी से पहचाने जाते हैं. ये चिर परिचित हैं और सरकार के पक्ष में बोलने के लिए मशहूर हैं. ऐसे भी समाचार सुनने को मिले हैं की 45 करोड़ डॉलर मीडिया को दिए गए हैं जिसमें वह अपना मुँह बंद रखें. मीडिया भी अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं कर रहा है. भ्रष्टाचार का वातावरण चरों और व्याप्त है. क्या हम ऐसे भ्रष्ट नेताओं मीडिया कर्मियों को झेलने को अभिशप्त हैं.

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