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आर एस एस, बी जे पी एवं हिंदुत्व ताक़तों का इतना विरोध क्यों.
पिछले 30 वर्षों में सारा का सारा राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है. आइये, इस बदले हुए परिदृश्य पर अवलोकन करने के लिए कांग्रेस से शुरुआत करते हैं. कांग्रेस जो स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 से मार्च 1977 और फिर जनवरी 1980 से 16 मई 1996 तक एकछत्र शासन करती रही है, वह अबतक के सबसे नीचे के स्कोर पर आ गई चुनाव परिणामों अनुसार उसे लोकसभा की 543 सीटों में से केवल 44 सीटें प्राप्त हुईं यह श्रीमती सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाता है. यह चुनाव परिणाम अपेक्षित थे. इसके पूर्व मार्च 1977 से जनवरी 1980 के दरम्यान जब इमरजेंसी हटने पर चुनाव हुए थे कांग्रेस को सत्ता छोड़नी पडी थी जनता पार्टी सत्ता में आई थी. बहुत से लोगों यह आभास था कि कांग्रेस में नेतृत्व नितांत अभाव है. इस कारण सल्तनत के कुछ चाटुकारों को छोड़कर किसी अन्य को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. कांग्रेस का इतिहास देखें तो पता लगेगा कि इस पार्टी में किसी भी ऐसे व्यक्ति को कभी भी प्रमुख स्थान नहीं दिया गया जो आगे चलकर सल्तनत लिए कोई संकट संकट पैदा कर सके. मोरार जी देसाई, एस के पाटिल, अतुल्या घोष तथा अन्य को बाहर का रास्ता देखना पड़ा. सोनिया गांधी के समय में भी सीताराम केसरी को कुर्सी समेत उठाकर उनके कांग्रेस अध्यक्ष कार्यालय से निकाल कर बाहर कर दिया.गया.धीरे धीरे कांग्रेस में प्रतिभा क्षरण होता गया. बचे केवल राहुल गांधी. जो भी प्रतिभा कांग्रेस अंदर बची थी , वह सर उठाने की हिम्मत नहीं कर सकती थी. सन 2008 के आम चुनाव के बाद, बहुत सोच विचार करके मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री पद के लिए चुना गया. सल्तनत के हितों को ध्यान में रखने के लिए मनमोहन सिंह से ज़्यादा उपयुक्त व्यक्ति नहीं हो सकता था. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर 10 वर्षों तक बर्दाश्त किया गया. मनमोहन सिंह नें इन दस वर्षों में अपने को इस पद के लिए सर्वथा अयोग्य साबित किया तथा कांग्रेस को 543 में 44 सीट पर रसातल में पहुंचा दिया. 10 वर्ष के लम्बे में अंतराल में भी राहुल गांधी अपने अंदर योग्यता का विकास नहीं कर पाये. विडम्बना है कि कांग्रेस अन्य किसी व्यक्ति को आगे नहीं आने दिया जाएगा हाँ; अगर मनमोहन सिंह जैसा कोई दूसरा मिल जाय तो और बात है.
अब बी जे पी पर भी विचार कर लें. अब तक बी जे पी देश की दूसरे नंबर की पार्टी थी. 1996 में पहली बार 161 सीटों के साथ 11 वीं लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई लेकिन बहुमत का प्रबंध न कर पाने के कारण सरकार केवल 13 दिन ( 16 मई से 1 जून 1996 ) चल सकी. दूसरी बार सं 1998 में पार्टी 12 वीं लोकसभा में 182 सीटों के साथ फिर सबसे बड़ी पार्टी बनकर आयी. इस बार वाजपेयी नें कई पार्टियों को मिलाकर एन डी ए ( NDA – National Democratic Alliance ) नाम का मिला जुला गठबंधन बनाया और लोकसभा में अपना बहुमत साबित किया. यह सरकार भी 19 मार्च 1998 से 17 एप्रिल 1999 तक 13 महीने ही चली . तीसरी बार . सन 1999 में 13 वीं लोकसभा में भी 182 सीटों साथ बी जे पी सबसे बड़ी पार्टी बनी. वाजपेयी जी नें एन डी ए का बहुमत वाला एक मजबूत स्थिर गठबंधन बनाया जिसके वह प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. सन 2004 में कांग्रेस अल्पमत में होते हुए भी कई दलों का यू पी ए गठबंधन बनाकर फिर सत्ता में आई और मनमोहन सिंह के नेतृतव में सरकार बनाई। सं 2009 से 2014 तक कांग्रेस का यू पी ए गठबंधन ने मनमोहन सिंह के नेतृतव में पुन :सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की. मनमोहन सिंह का कार्यकाल 2 G, 3 G, CWG, कोयला जैसे महा घोटालों के लिए जाना जायेगा. इन घोटालों में मनमोहन सिंह पर संदेह करने का कोई कारन नहीं है लेकिन चूंकि यह घोटाले उनकी नाक के नीचे हुए इस कारण उनकी अक्षमता तो ज़ाहिर होती ही है. पिछले 30 सालों में कोई भी पार्टी अकेले अपने दम पर बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी थी. पहली बार मई सन 2014 के आम चुनावों में श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा में पहली बार 282 सीटों के साथ बी जे पी के अकेली अपने दम पर बहुमत में आयी बी जे पी के एन डी ए गठबंधन को 336 सीटें प्राप्त हुईं. कांग्रेस को कुल 44 सीटें प्राप्त हुईं और उसके समूचे यू पी ए गठबंधन को केवल 55 सीटें मिलीं. श्री नरेंद्र मोदी नें 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमंत्री पद का कार्यभार सम्भाला.
कई तरह की कम्युनिस्ट पार्टियां हैं जैसे सी पी एम, सी पी आई, मार्क्सिस्ट – लेनिनिस्ट ( ML ) इत्यादि, इत्यादि. भारत की समस्याओं से इनका सरोकार कभी नहीं रहा. ये रूस और चीन के गुण गाते रहे. एक प्रचलित कहावत है की जब कभी मास्को या बीजिंग में पानी बरसता था कामरेड लोग दिल्ली में छाता खोल लेते थे. रूस में कम्युनिज़्म समाप्त हो जाने और उसके कई टुकड़े हो जाने पर भारत के कम्युनिस्ट अनाथ हो गए हैं. चीन यद्यपि कि अभी भी कम्युनिस्ट होने का दम भरता है, लेकिन वह भी पूंजीवाद के रास्ते पर चल निकला है. मार्क्सिस्ट- लेनिनवादी ( ML ) या माओवादी ( Maoist ) वैसे भी लोकतंत्र में विश्वास न करके बन्दूक के शासन या जिसे Gunतंत्र कहा जा सकता है, में विश्वास करते हैं.
अन्य राजनीतिक दल किसी व्यक्ति, परिवार, क्षेत्र, भाषा या धर्म पर आधारित हैं. इनके अपने सशक्त वोट बैंक हैं. इनके वोट पक्के हैं जो इन दलों को हमेशा मिलते रहते हैं. राष्ट्रीय दल इनका समर्थन पाकर संसद में बहुमत जुटाने की लालायित रहते हैं.
कांग्रेस की परेशानी यह है कि उसके पास नेतृत्व का नितांत अभाव है. कांग्रेस का निरंतर ह्रास हो रहा है, जो ज़मीन कांग्रेस खाली करती जा रही ,है, बी जे पी उस शून्य को भरने के प्रयास में लगी हुई है. मई 2014 में हुए आम चुनाव के परिणामों को देखकर कांग्रेस को ज़बरदस्त शाक लगा है. वह बौखलाई हुई है.ऐसे चुनाव परिणामों अपेक्षा न तो जीतने वाले वाले को थी और न हारने वाले को. बी जे पी को अपदस्थ करने के लिए कांग्रेस सभी तरह के हथकंडे अपनाती रहती है.अभी हाल में मैनें टीवी के किसी चैनल पर देखा कि कांग्रेस के एक बड़े नेता पाकिस्तान गए थे या भेजे गए थे. एक पाकिस्तानी पत्रकार को इंटरव्यू देते समय वह उस पत्रकार से बी जे पी और प्रधानमंत्री मोदी को अपदस्थ करने के लिए पाकिस्तान का समर्थन की याचना करते हुए देखे गए थे. जयचन्द की परंपरा का निर्वाह बखूबी कर रहे थे. पृथ्वी राज चौहान को हराने के लिए जयचन्द ने शायद इसी प्रकार मुहम्मद गोरी से याचना की होगी.कांग्रेस देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न करना चाहती है जिसमें उसे शीघ्र ही शासन में आने का मौका मिले. इसी लिए वह तरह तरह के non issues को मुख्य मुद्दा बनाकर खड़ा करती है जैसे कभी टॉलरेंस, कभी सेक्युलरिज्म इत्यादि इत्यादि. अभी हाल में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु जो पार्लियामेंट पर हमले में शामिल था और जिसे फांसी दे दी गई थी की बरसी मनाई गई थी. उसमें जे एल एन विश्वविद्यालय स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का भाषण हुआ था जिसमें अत्यन्त ही आपत्तिजनक नारे लगाए गए जैसे ‘ कितने अफजल मारोगे, घर घर से अफजल निकलेंगे ‘, ‘ अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे क़ातिल जिन्दा हैं, ‘ भारत के टुकड़े टुकड़े कर देंगे, जब तक भारत के टुकड़े टुकड़े नहीं हो जाते जंग लड़ेंगे. ज़ाहिर है ऐसी शक्तियां हैं जो देश को बर्बाद करना चाहती हैं. इनके समर्थन में पहुँचने वाले थे कांग्रेस के उपाध्यक्ष श्रीमान राहुल गांधी. 30 सालों में कोई भी राजनीतिक दल अपने बल पर बहुमत हासिल नहीं कर सका था. बी जे पी 282 सीटें प्राप्त कर अकेले अपने दम पर बहुमत प्राप्त कर सकी है. अगर समूचे एन डी ए गठबंधन ने 336 सीटें प्राप्त कीं जो आवश्यक बहुमत से बहुत ज़्यादा है. कांग्रेस को कुल 44 सीटें मिलीं. समूचे यू पी ए केवल मात्र 55 सीटें मिलीं. बी जे पी की इस भारी जीत से कांग्रेस और अन्य प्रतिद्वंदी दल बौखलाए हुए हैं. उनको अपनी दुकान बंद होती नज़र आ रही है. वह अपनी इस हार को पचा नहीं पा रहे हैं. इस कारण बी जे पी को अपदस्थ करने के लिए तरह तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं. बी जे पी एक राष्ट्रवादी दल है जो न तो किसी व्यक्ति, न किसी परिवार और न किसी क्षेत्र या भाषा के लिए कार्य करता है यह राष्ट्र के हित में कार्य करता है.
बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचार धारा में समानता है. अंतर केवल इतना है कि बी जे पी राजनीतिक क्षेर में कार्य करती है जब कि आर एस एस सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्य करता है और आवश्यता पड़ने पर बी जे पी का मार्गदर्शन भी करता है. आर एस एस यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना विभाजित हिन्दू समाज को एक सूत्र में बांधने के लिए हुई थी. हिन्दू समाज में व्याप्त ऊँच नीच, जातिवाद इत्यादि को समाप्त करने में भी आर एस एस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. . भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में जो कुछ उत्तम एवं श्रेष्ठ है उसे बचा कर रखने में प्रचार एवंम प्रसार करने में भी आर एस एस की मुख्य भूमिका होती है. आर एस एस अपने सदस्यों पर अच्छे संस्कार भी डालता है. चरित्र निर्माण करता है और इस प्रकार राष्ट्र निर्माण करता है. देश पर जब कोई विपत्ति आई जैसे बाढ़, भूकम्प या पाकिस्तानी आक्रमण आर एस एस ने सबसे आगे बढ़ कर सेवा कार्य सम्भाला है. जन जातियों के बीच उनकी शिक्षा एवं स्वास्थय के क्षेत्र में कार्य करने में भी आर एस एस अग्रणी भूमिका निभा रहा है. आर एस एस का उद्देश्य, इसकी कार्य प्रणाली हमारी सभ्यता, संस्कृति एवं परंपरा के अनुकूल है. इसमें सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद, दूसरों आदर करना इत्यादि सभी कुछ शामिल है. हमारी सभ्यता, सस्कृति एवं परंपरा में जो कुछ श्रेष्ठ और अच्छा है उसे स्वीकार कर लिया जाता है बाकी छोड़ दिया जाता है. आर एस एस देश के लिए एक बहुत बड़ा asset है
हिन्दुतव की कुछ अपनी विशेषताएं हैं. हमारे यहां विश्वास किया जाता है कि ईश्वर, अल्लाह, गॉड सब एक हैं. उनके तक पहुँचने के अलग अलग रास्ते हो सकते हैं लेकिन लक्ष्य सभी का एक है. हम सभी को सम्मान की दृष्टी से देखते हैं. हम सभी को श्रद्धा की दृस्टि से देखते हैं. धर्म निरपेक्षता एवं सहिष्णुता हमारी संस्कृति और परंपरा के मूल में है. इस प्रश्न ‘ आर एस एस, बी जे पी एवं हिंदुत्व ताक़तों का इतना विरोध क्यों ? उत्तर में मैं समझता हूँ कि बी जे पी की भारी जीत और कांग्रेस की भारी हार के कारन राजनीतिक दल घबरा गए हैं.उन्हें अपनी दुकानदारी बंद होती नज़र आ रही है. उन्हें रोटी रोजी की चिंता सताने लगी है.
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