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कैसी आज़ादी

निहितार्थ
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कैसी आज़ादी

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय क्षात्र संघ के अध्यक्ष श्री कन्हैया लाल कुमार नें अपने भाषण में निहायत आपत्तिजनक भारत विरोधी नारे लगाए थे, यहां तक कहा गया कि जब तक भारत के टुकड़े टुकड़े नहीं कर दिए जाते तब तक जंग चलती रहेगी. हथियार से आज़ादी हासिल की जाएगी. कश्मीर को आज़ाद कराया जाएगा . भारतीय संसद पर आक्रमण करने वाले अफजल गुरु जिसे फांसी दी गई थी की बरसी मनाई जा रही थी. एक नारा था ” कितने अफजल मारोगे. घर घर से अफजल निकलेगा “.   इक्का दुक्का खास तौर से ज़ी टी वीं को छोड़कर मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग इनके समर्थन में खड़ा था. कई तथाकथित बुद्धजीवी और मानवाधिकारवादी भी सीना तान कर आकर मैदान में खड़े हो गए. ऐसा लगा मानों फ़्रांस की जनक्रांति या रूस की बोल्शेविक क्रांति भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रही हो. कन्हैया लाल ने भारी क्रान्तिकारी भाषण दिया और मीडिया की वाह वाही लूटी. ये गतिविधियाँ राष्ट्रविरोधी श्रेणी के अतिरिक्त किसी अन्य श्रेणी में नहीं रखी जा सकतीं. परिणाम स्वरुप कन्हैया लाल को जेल यात्रा भी भोगनी पड़ी. जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आने पर कन्हैया लाल ने 180 डिग्री की पलटी मारी. अब वह एक नए रूप में सामने आये. उनका कहना है कि उन्होंने वे सारी बातें कही ही नहीं और उनके बराबर का देशभक्त दुनिया में कोई हो ही नहीं सकता. उनके कुछ सहयोगी अभी भी जेल की रोटियां तोड़ रहे हैं.

अब वे कहते हैं कि उन्हें देश के भीतर रहकर ही आज़ादी चाहिए. वे यह नहीं बताते कि उनकी आज़ादी में क्या कमी है. दुनिया के किस देश का संविधान अपने नागरिकों को इतनी आज़ादी देता है जितना की भारत का संविधान. शायद उनको यह नहीं पता कि आज़ादी के क्या मायने हैं. वे कन्हैया लाल न होकर नटवर लाल हैं. देश का हर नागरिक जानता है कि आज़ादी का क्या मतलब है और वह क्या चाहता है. लेकिन कन्हैया लाल समझते हैं कि आज़ादी का मतलब है हल्ला गुल्ला करना, अराजकता फैलाना, गाली गलौज करना, हिंसा फैलाना, खून खराबा करना, माओवाद के अनुकरण में स्कूल. बिजली उत्पादन के सयंत्र, पल, सड़कें, रेल की पटरियों इत्यादि को बम से उड़ा देना, पुलिस वालों, आदिवासियों की हत्या करना इत्यादि इत्यादि. ये लोग माओत्से तुंग के इस सिद्धांत में विश्वास करते हैं की कि “ Political power flows out of the barrel of the gun “. ये लोग लोकतंत्र के बजाय Gun तंत्र में विश्वास रखते हैं. कन्हैया लाल और उनके बद्धिजीवी समर्थक इन सब अराजक गतिविधियों को करने की आज़ादी चाहते हैं. Gun तंत्र में बन्दूक का शासन होगा.

देश के आम आदमी को इस तरह की आज़ादी से कोई सरोकार नहीं है. आम आदमी की प्राथमिकताएं हैं , गरीबी, भुखमरी, गैर बराबरी, उंच, नीच, बीमारी, बेरोजगारी भ्रष्टाचार, पाकिस्तान प्रायोजित आतंवाद एवं नक्सलवाद मिटाना. सभी नागरिकों के इलाज़ एवं शिक्षा की व्यवस्था और राष्ट्रीय आय का सम्यक वितरण. हमें देश की इन समस्याओं से आज़ादी चाहिए,. कन्हैया लाल ने देश की इन ज्वलंत समस्याओं के बारे में कुछ नहीं कहा. ज़ाहिर है उनकी निगाहें कहीं और हैं. “ कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना “. अगर वह भारत के टुकड़े टुकड़े करने की आज़ादी चाहते हैं तो यह निश्चित रूप से गद्दारी है. इसका भीषण प्रतिरोध होगा. कन्हैया लाल राजनीतिक ताक़तों के मोहरे नज़र आते हैं. देश के विकास लिए और गरीबी एवं भुखमरी से आज़ादी दिलाने के लिए उनके पास कोई दृष्टी नज़र नहीं आती है,. निहित स्वार्थ की शक्तियों नें अपने स्वाार्थ साधन के लिए इन्हें खड़ा किया है. सभी प्रकार के साम्यवादियों का घोषित उद्द्देश्य रहा है रक्तरंजित क्रांति द्वारा लोकतंत्र को समाप्त कर बन्दूक का शासन स्थापित करना.

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