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क्या भारत आज दुनिया में अकेला है ?

निहितार्थ
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विश्व के प्राकृतिक संसाधन पेट्रोलियम, गैस, आयरन, ताम्बा इत्यादि धातुयें जो कभी न कभी ख़त्म हो जाने वाले हैं, तब से इन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए प्रतिस्पर्धा, मारामारी बहुत ज़्यादा बढ़ गई है. अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी बहुत से देशों नें धर्म, भाषा, निहित स्वार्थ के आधार पर गुट बना लिए हैं. ज़रुरत पड़ने पर, इस्लामिक देश इस्लाम धर्मऔर जिहाद के नाम पर इकट्ठे हो जाते हैं. यूरोप और अमेरिका के क्रिश्चियन देश धर्म और सफ़ेद रंग की चमड़ी आधार पर एकत्र हो जाते हैं. इन्होनें आर्थिक आधार पर भी गुट बना रखे हैं. प्रकृति के संसाधनों जैसे पेट्रोलियम, गैस इत्यादि पर भी ये देश अपना अधिपत्य चाहते हैं. यूरोप और अमेरिका के देश ज़्यादातर आर्थिक दृष्टी से समृद्ध और ताक़तवर हैं. ये विश्व के संसाधनों का उपयोग अपने लिए ही करते हैं और गरीब देशों को वंचित रखते हैं. कहा गया है ‘ वीर भोग्या वसुंधरा। ” वीर और ताक़तवर ही इस धरती को भोग सकते हैं. शुरू में शीत युद्ध के दिनों में विश्व राजनीति मुख्य रूप से 3 गुटों में बंटी थी . एक था अत्यंत शक्तिशाली पश्चिमी पूंजीवादी देशों का गठबंधन जिसका नेतृत्व था अमेरिका के हाथों में. दूसरे समाजवादी देशों के गठबंधन का नेतृत्व रूस के हाथों में था. कुछ अन्य राष्ट्रों मिश्र, युगोस्लाविया, इंडोनेसिया इत्यादि जिसमें भारत भी शामिल था ने मिलकर एक निर्गुट ( Nonaligned ) गुट बनाया. इस तीसरे गुट में यद्यपि कि बड़े बड़े नेता जैसे पंडित जवाहर लाल नेहरू, युगोस्लाविया के मार्शल टिटो, मिश्र के मोहम्मद नासिर, इंडोनेशिया के सुकर्णो शामिल थे लेकिन यह सबसे कमजोर था. यह अपने को बहुत ज़्यादा आँकता था लेकिन विश्व पटल इसकी आवाज़ निष्प्रभावी थी. धीरे धीरे यह तीसरा गुट अस्तित्वहीन होता गया. भारत पूंजीवादी या समाजवादी किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ. परिणामस्वरूप भारत दुनिया में अकेला ही नज़र आता है. यद्यपि की अपने पैर पर खड़े होने भारत नीति लगती है लेकिन शीत युद्ध की परस्थितियों में हम अपने को अकेला पाते हैं. कश्मीर की समस्या को ही लिया जाय तो पाकिस्तान के मुकाबले हम अपने को अकेला पाते हैं. सभी मुसलिम देश पाकिस्तान के साथ खड़े नज़र आते हैं. चूंकि पाकिस्तान पश्चिमी देशों के साथ शामिल रहा है इस कारण गाहे बगाहे इन देशों का भी समर्थन भी उसे मिलता रहा है.

हम किसी को डराने धमकाने के लिए शक्तिशाली नहीं बनना चाहते हैं बल्कि अपने विकास, अपनी प्रगति की सुरक्षा के लिए शक्तिशाली बनना चाहते हैं

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