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सेक्युलर ( धर्मनिरपेक्ष ) कौन ?

निहितार्थ
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सेक्युलर ( धर्मनिरपेक्ष ) कौन ?

मैं समझता हूँ कि सैक्युलर व्यक्ति या धर्म वह होता है जो दूसरों को इज़्ज़त और सम्मान की दृष्टी से देखता है किसी से घृणा नहीं करता है. परस्पर उंच नीच का भेदभाव नहीं करता है. .

हमारे देश में कुछ ऐसे बुद्धिजीवी हैं जिन्हें मैं दुर्बुद्धिजीवी ( या बुद्धिहीन ) कहना पसंद करता हूँ जो हिन्दू को ही साम्प्रदायिक बताते हैं. मेरी ही मान्यता है कि केवल हिन्दू आस्था ही धर्मनिरपेक्ष होने की इज़ाज़त देती है. इस्लाम और ईसाई धर्म में धर्मनिरपेक्ष होने की इज़ाज़त नहीं है. केवल हिन्दू ही परंपरा, आस्थावश सभी को समान मानता है. हिन्दू का विश्वास है कि भगवान, ईश्वर अल्लाह, खुदा, गाड, वाहे गुरु सब एक हैं यद्यपि की हम उन्हें अलग अलग नामों से जानते हैं. सभी की पहुँचने की जगह यद्यपि कि सभी के रास्ते अलग अलग हैं. मुझे अक्सर यह ताज्जुब होता कि क्या कारण है कि हिन्दू जो की वास्तव में धर्मनिरपेक्ष है उसे धर्मनिरपेक्ष बनने को कहा जाता है और जो कि वास्तव में सांप्रदायिक हैं उनको कोई कुछ नहीं कहता है गहन विचार के मैंने कुछ अपने निष्कर्ष निकाले हैं. मुझे ऐसा लगता है कि हिन्दू कमज़ोर है इसलिए हर कोई उससे छूट लेता है;

हिन्दू सहिष्णु और ,सहनशील है. हमने अपनी छवि देसी कहावतों जैसी कुछ    ऐसी बना रखी है जैसे कि ( 1 ) कमज़ोर की बीबी गांव भर की भाभी होती है और ( 2 ) कमज़ोर का मुंह कुत्ता चाटता है. इन्हीं कारणों से हर कोई हमसे छूट लेता है और हमसे दुर्व्यवहार करता है जो सांप्रदायिक हैं उन्हें कहा जाता है कि शाबाश तुम्हीं असली धर्मनिरपेक्ष हो. हम जो असली धर्मनिरपेक्ष हैं उन्हें कहा जाता है कि हिन्दुओं को धर्मनिरपेक्ष बन जाना चाहिए।

सुनने, कहने, लिखने पढने में सेक्युलरवाद बहुत अच्छा कर्ण प्रिय लगता है. मुझे यूरोप के देशों में भी रहने का मौक़ा मिला है. मैनें पाया कि दुनिया के सभी देशों में केवल भारत ही सेक्युलर हो सकता है. और अन्य कोई धर्म सेक्युलर होने की इजाज़त नहीं देते हैं. अभी दो दिन पूर्व कुछ कामवश एक ईसाई महोदय मेरे घर पर आये थे। उनका कहना था कि आजकल वह परमेश्वर का कार्य कर रहे थे। बात मेरी कुछ समझ में नहीं आई. उन्होंने आगे समझाया कि परमेश्वर के यहाँ पहुंचने के लिए केवल ईसामसीह रास्ता दिखा कते है. बाकी सभी धोखा हैं. उनकी इस बात पर मुझे हंसी आ गई. क्या अपने को सेक्युलर बताने के लिए दूसरे धर्मों को गाली देना ज़रूरी है कृपया विचार करें. सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि घोर सम्प्रदायवादी हिन्दू को जो कि पहले से ही सेक्युलर है उसे सेक्युलर बन जाने को कहते हैं. “

प्रधानमंत्री नें कहा है कि भारत और मध्य एशिया ने इस्लाम के उच्च आदर्शों को अपनाया है और इस्लामी अवधारणाओं की चरमपंथ व्याख्या से यह क्षेत्र हमेशा दूर रहा है। उन्होंने भारतीय और इस्लामिक सभ्यता के मेल से दोनों के बीच औषधि गणित आदि के क्षेत्र में हुए बहुमूल्य आदान प्रदान को स्मरण कराया। साथ ही सूफी धारा के कारण भारत इस्लाम के नए आकर्षक केंद्र के रूप में उभरने के इतिहास का भी उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने वहां जो कहा वह मिलीजुली संस्कृति वाले हमारे देश में सद्भाव के एक बड़े ज्वार का उत्प्रेरक माना जाना चाहिए लेकिन यह निश्चित है कि उक्त भाषण उनका अपना नहीं था बल्कि उन्होंने कूटनीतिक जरूरतों के लिहाज से विदेश मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा देशकाल के अनुरूप तैयार किया गया भाषण औपचारिकतावश पढ़ा। काश वे इस भाषण को पढऩे के बाद संघ की पाठशाला में अपने अंदर इस्लाम को लेकर बुनी गई मनोग्रंथि पर पुनर्विचार करने को प्रेरित होते “

सेक्युलरवादी भारत को गंगा जमुनी मिली जुली संस्कृति वाला देश कहते हैं यह बात भी मेरे सर के ऊपर से निकल जाती है. अगर यह बात सही होती तो मुसलमान कभी भी पाकिस्तान की मांग नहीं करता और न तो द्विराष्ट्रवााद के सिद्धांत को प्रस्तावित करता। मुसलमान आज भी two nation theory में विश्वास करता है. वह अपने को भारत का हिस्सा नहीं मानता है. मैं कुछ् मुस्लिम लीडरान को पब्लिक प्लेटफार्म से सुना है. वे भारत के संविधान में उतना ही विश्वास करते हैं जितना कि शरीयत के अनुकूल है. यह सेक्युलरिज़्म हमें स्वीकार्य नहीं होगा. हर धर्म के लिए अलग अलग संविधान नहीं बनाया जा सकता। देश का सविधान तो एक ही होगा. . .

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