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हमारी प्राथमिकताएं क्या हों

निहितार्थ
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हमारी प्राथमिकताएं क्या हों

हमारी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए देश से हज़ारों साल पुरानी गरीबी, भुखमरी, बीमारी को मिटाना और उंच नीच के भेदभाव तथा गैर बराबरी को समाप्त करना और एक आधुनिक भारत का निर्माण. भारत की सभ्यता, संस्कृति लगभग 5000 वर्ष पुरानी मानी जाती है. यह वैदिक काल था जब ऋग्वेद की रचना हुई थी. ऋग्वेद का नाम मैनें इसलिए लिखा है क्योंकि तब से अबतक 5 हज़ार साल बीत गए हैं. ऋग्वेद दुनिया का सबसे पुराना ग्रन्थ माना जाता है

गुलामी का काल

ऋग्वेदइ काल से लेकर सन 1000 के दरम्यान बहुत से लोग बाहर से भारत में आते रहे और यहां बसते चले गये. हमने बिना किसी भेदभाव के सभी को यहां बसने दिया. इसमें से कुछ लुटेरे बनकर आये और लूट कर अपने वतन लौट गये. इनमें मुहम्मद गजनवी ( 1030 -1041 ) और मुहम्मद गोरी ( 1149-1206 )का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. अनेकों नें यहां भीषण नर संहार किया यहांँ के मूल निवासियों को गुलाम बना लिया और अपनी सल्तनत कायम की.

हमारी सभ्यता, संस्कृति, परम्परा एवं धर्म का प्रभाव

हमारी सभ्यता, संस्कृति एवं परंपरा कुछ इस प्रकार की है कि हमें गरीबी, संन्यास, त्याग, तपस्या , सादगी में रहना सिखाया जाता है. हमारे यहां गरीबी, त्याग, तपस्या, सादगी को महिमामंडित किया जाता है. महात्मा गांधी जी भी कवल एक धोती पहनते थे तथा सादगी का जीवन बिताते थे। इसी कारण वे इतने बड़े महापुरुष बने. हमारे यहां जो कोई सब कुछ त्याग कर काम से काम आवश्यकताओं से अपना जीवन निर्वाह करता है वह श्रद्धा का पात्र होता है. हमारे यहां भौतिक चीज़ों की और दौड़ने वाले को सम्मान नहीं मिलता है. यह भी एक कारण है कि हम गरीबी में रहना पसंद करते हैं. हम अपने जीवनस्तर को उन्नत बनाने का प्रयत्न नहीं करते हैं.

बढती हुई आबादी

हमने लगभग एक हज़ार साल की गुलामी झेली. यह सामंतशाही का युग था. सारे संसाधन सामन्तशाहों के हाथ में थे.सामान्य नागरिक गरीब होता गया. इतना लम्बा सफर तय करने के बाद भी आज हम अविकसित और गरीबी की स्थिति में हैं एक पाश्चात्य विद्वान Ronald Segal नें अपनी पुस्तक Crisis of India में लिखा है ‘ India is a rich country inhabited by poor people “. कहने का मतलब है कि भारत एक समृद्ध देश है लेकिन यहां के निवासी गरीब हैं. कुछ लोग ज़्यादा अमीर हैं और कुछ बहुत ही गरीब। देश की सम्पति कुछेक लोगों के पास सिमट कर रह गई है. देश की सम्पति का सम्यक वितरण ( equitable distribution ) पर हमने ध्यान नहीं दिया. अमीर और अमीर होते गए हैं और गरीब और अधिक गरीब हज़ारों साल के दौरान हम अपने लोगों की गरीबी नहीं दूर कर सके हैं. आज भी हमारी बहुत बड़ी आबादी गरीबी, हर प्रकार के अभाव, भुखमरी, बीमारी, गैर बराबरी से ग्रस्त है. मध्य काल में बुद्ध, महावीर जैसे महापुरुषों नें इन समस्याओं की और लोगों ध्यान आकृष्ट करने का भरसक प्रयत्न किया. आधुनिक काल में महात्मा गांधी, डा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, नेता जी सुभास चन्द्र बॉस, सरदार भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद इत्यादि अनेकों क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों नें न केवल अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ संघर्ष कर देश को आज़ादी दिलाई बल्कि आम जनता को समाज में व्याप्त बीमारी, गरीबी, भुखमरी से मुक्ति दिलाने का यथाशक्ति प्रयत्न किया. हमारी गरीबी हज़ारों साल पुरानी है. इन बातों को ध्यान में रखकर ही हमें रणनीति बनानी होगी तभी हम गरीबी, भुखमरी, गैरबराबरी से पार पा सकेंगे.

हमारी प्राथमिकताएं क्या हों

इसको समझने से पहले हमें अपनी समस्याओं पर विचार करना होगा. हमें यह समझना पड़ेगा की मूलरूप से हम स्वार्थी हैं. हमारे यहाँ सभी व्यक्ति अपने स्वार्थ की और ध्यान देते हैं. हमारा धर्म हमें स्वाार्थी बनाता है. हमारे यहाँ सामाजिक चेतना का नितांत अभाव है. हम समाज की परिस्थितियों, आवश्यकताओं की और ध्यान न देकर अपने को अपने स्वार्थ तक ही सीमित रखते हैं. हमें समाज से कोई सरोकार नहीं है. गोस्वामी तुलसी दास ने इस सत्य को सच ही पहचाना है. ‘ सुर, नर, मुनि सबकी यह रीती, स्वारथ लगी करें सब प्रीती। ” परिणामस्वरुप हम एक समाज की तरह न रहकर एक व्यक्ति की तरह रहते हैं. इसी कारण हमारे बीच आपस में इतना ऊँच नीच का भेदभाव है. यहाँ तक कि हमारे सबके भगवान भी अलग अलग हैं. अपनी अलग अलग पूजा पद्धति और आस्था है. मेरे बचपन में जब देश की आबादी करीब 35 करोड़ थी तब हमारे देवी देवताओं की आबादी भी लगभग इतनी ही 35 करोड़ ही मानी जाती थी. यानी कि व्यक्ति के पीछे एक देवी या देवता. इतना विभाजित समाज शायद ही कोई मिलेगा. हमारी आबादी लगातार बढ़ती रही है. पिछले लगभग 65 वर्षों में आबादी 35 करोड़ से 125 करोड़ पहुँच चुकी है. कृषि योग्य ज़मीन लगातार घटती चली गई है. इसका परिणाम सभी संसाधनों के अभाव में परिलक्षित होता है. अस्पतालों, डाक्टरों, अन्य स्वास्थ्य सेवाओं, स्कूलों, सिचाई के साधनों, बिजली, सार्वजनिक परिवहन, कृषि उत्पांदन में कमी इत्यादि बढती हुई आबादी के सीधे दुष्परिणाम हैं. सिंचाई के साधनों, बिजली, पानी उर्वरकों,बीजो की कमी के कारण कृषि का विकास नहीं हो सका है. कई बार देश को भीषण दुर्भिक्ष का सामना करना पड़ा.

कालेधन की भूमिका

किसान और मज़दूर देश के अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं. किसान खेतों में अनाज पैदा करके देशवासियों का पेट पालता है और अन्य जीवनोपयोगी चीज़ें पैदा करके आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है. मजदूर औद्योगिक प्रतिष्ठानों में शारीरिक श्रम द्वारा सभी प्रकार की वस्तुओं मशीनरी, कपडे, दवाएं तथा अन्य वस्तुओं का उत्पादन करता है. किसान और मजदूर दोनों ही इस प्रक्रिया में अपना खून और पसीना बहाते हैं. उत्पादों को बाज़ार बिकने पर पारिश्रमिक के रूप में लाभ का छोटा हिस्सा ही किसान, मजदूर को मिल पता है जो उसके जीवन यापन, उसके बच्चों की शिक्षा तथा परिवार की चिकित्सा के लिए सर्वथा अपर्याप्त होता है. लाभ का बडा हिस्सा मालिक / पूंजीपति की तिजोरियों में जाता है जिसपर वह कोई टैक्स नहीं देता है. इस प्रकार की आय जिसपर टैक्स नहीं दिया जाता है वह काला धन कहलाता है. बहुत्त सा काला धन पूँजीपतियों द्वारा विदेशी बैंकों जैसे स्विस बैंक में जमा कर दिया जाता है जो भारत सरकार की पहुँच से बाहर होता है. यह कालाधन देश के विकास के उपयोग में नहीं आकर विदेशों के विकास के काम में आता है. हमारे किसान मजदूर द्वारा पैदा किया गया धन हमारे काम में न आकर विेदेशों में निवेश होता है. हमारे देश का गरीब और गरीब होता जाता है. हमारे जब बजट बनता है तब केवल सफ़ेद धन ही सरकार की पहुँच में होता है. कालाधन सरकार की पहुँच से बाहर होता है

संसाधनों का सम्यक वितरण

हमारे यहां गावों और शहरों में भी मूलभूत सुविधाओं ( इंफ्रास्ट्रचर ) का नितांत अभाव है., स्कूल्, कालेज, स्वास्थ्य सेवाएं,सडकों, बिजली, पानी, परिवहन, पेट्रोलियम इत्यादि की कमी है जो जनसामान्य के उपयोग के लिए अपर्याप्त है. सामान्य व्यक्ति की आय में और उच्च वर्ग की आय में भारी अंतर है जो जीवनयापन के लिए भी भी पर्याप्त नहीं है. अमीरों के पास अकूत धन संपत्ति है जो काले धन के रूप में उनकी तिजोरियों और स्विस बैंक एकाउंटों में जमा है. इस काले धन को बाहर निकाल कर इसे गरीबों के उत्थान के लिए लगाना होगा. काले धन का उत्पादन रोकना होगा. जो धन काले धन के रूप में धन्ना सेठों की तिजोरियों में और विदेशों में स्विस और बैंकों में जाता है, वह देश के गरीब किसान मजदूरों और अन्य गरीबों की गरीबी दूर करने के लिए उपयोग में आना चाहिए. इसमें उनकी हिस्सेदारी ज़रूरी है क्योंकि यह उन्हीं की खून पसीने की कमाई है.

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