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कैसे मिटेगा नक्सलवाद ————–?जागरण जंक्शन फोरम

निहितार्थ
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कैसे मिटेगा नक्सलवाद—

( नक्सलवाद / माओवाद का गन ( Gun ) तंत्र )

शनिवार 25 मई को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों (Naxalite) ने जो हिंसा का तांडव किया उसने समूचे देश को हिला कर रख दिया है. छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को खत्म करने की नक्सलियों की हरकत नें खतरे की घंटी बजा दिया है. । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के दौरान नक्सलियों नें नेता प्रतिपक्ष श्री महेन्द्र कर्मा  समेत 30  निर्दोष लोगों की हत्या की और श्री विद्याचरण शुक्ल समेत अन्य अनेक लोगों को गोलियों से आहत किया. यह नक्सलियों की पहली ऐसी हरकत नहीं है वे पहले भी कई बार ऐसा कर चुके हैं। ठीक दो वर्ष पहले अप्रैल 2010 में छत्तीसगढ़ में ही नक्सलियों (Naxalite) ने राज्य पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस (सीआरपीएफ) के 75 जवानों की हत्या कर दी थी. विडंबना यह रही कि इन 75 जवानों की हत्या के आरोप में पकड़े गए नक्सली सबूतों के अभाव में छूट गए और किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं दिखी। कांग्रेस के काफिले पर हुए घातक नक्सली हमले को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि  नक्सलवादी अब और अधिक और अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं. मध्य-प्रदेश के घने और आदिवासी इलाकों में फैला नक्सलवाद अब और अधिक खतरनाक होता जा रहा है और जो दुस्साहस इस बार उन्होंने दिखाया है उसे देखते हुए इस नक्सली हमले को अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला माना जा रहा है। नक्सलवाद देश की अंदरूनी सुरक्षा के लिए आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक नज़र आने लगा है. कुछ अज्ञात कारणोंवश राज्य एवं केन्द्रीय सरकारें इस पर नियंत्रण पानेमें असमर्थ रही हैं. इसके विपरीत यह अपने पांव अब और ज्यादा पसारने लगा है।


किसी समस्या से निपटने के लिए उसे गहराई तक समझने की आवश्यकता होती है.नक्सली लोकतंत्र में विश्वास नहीं  करते हैं. नक्सलवादी आदोलन की नींव पश्चिमी बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव में पडी थी. इनका नारा था ‘ आमार बाडी तोमार बाडी नोक्सालबाडी ‘. ये लोग चीन के चेयरमैन कामरेड माओत्सेतुंग की माओवादी विचाधारा के अनुयायी थे. इंदिरागांधी जी के प्रधानमंत्रित्व काल में यह आन्दोलन ज्यादा दिन चल नहीं सका और उसे दबा दिया गया. अब यह और भी विकराल रूप में उभरा है. माओवाद के प्रणेता चीन के चेयरमैन कामरेड माओत्सेतुंग का कहना था ‘ Power flows out of the barrel of the gun’ . सता बन्दूक की नली से प्राप्त होती है. कामरेड माओ का जनता द्वारा चुनी गई लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं था. कामरेड माओ एक ऐसी अधिनायकवादी व्यवस्था चाहते थे जो Rule of the gun, by the gun, for the gun हो . दूसरे शब्दों में कामरेड माओ लोकतंत्र की जगह ‘ गन ( Gun – बन्दूक ) तंत्र ‘ की स्थापना करने में विश्वास रखते थे जिसमें थोड़े से लोग बन्दूक की सहायता से जनता पर शासन करें. चीन नें वैसे तो पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था अपना लिया है लेकिन वहाँ यही Gun तांत्रिक शासन प्रणाली आज भी कायम है. हमारे देश के नक्सलवादियों नें यही सिद्धांत अपना लिया है.ये    लोग लोकतंत्र को हटाकर उसकी जगह बन्दूक का शासन स्थापित करना चाहते हैं.

क्या भ्रष्टाचार नक्सलवाद की उत्पत्ति का कारण है.
हमें नक्सलवाद कि उत्पत्ति के कारणों को समझना होगा. जागरण जंक्शन में श्री पवन कुमार अरविन्द की विचारोत्तेजक ब्लॉग पोस्ट ‘ नक्सली ही हैं विनायक सेन ‘ प्रकाशित हुई थी . इस पर ब्लॉगर पाठकों की टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलीं. पूर्व में श्री प्रमोद चौबे जी के मतानुसार नक्सलवाद की जड़ में सर्वव्यापक भ्रष्टाचार ही है. आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध सारा देश उबल रहा है. अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी जन लोकपाल आन्दोलन इसी आक्रोश की उपज है. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हमें यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि भ्रष्टाचार कोई मुद्दा है ही नहीं. एक विद्वान् बुद्धिजीवी लेखक का कहना है कि ‘ और भी गम हैं ज़माने में भ्रष्टाचार के सिवा ‘. JJ के एक ब्लॉगर का कहना है कि अन्ना टीम की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है. अन्ना टीम की विश्वसनीयता को क्षति पहुंचाने की जी तोड़ कोशिश हुई  सरकार जो देश चला रही है उसकी गहरे कीचड़ में सनी हुई विश्वसनीयता की चिंता किसी को नहीं है. चौबे जी का कहना था कि  , मानो अन्ना टीम ही देश चला रही हो. अन्ना टीम की कमीज़ सरकार की कमीज़ से ज्यादा सफ़ेद क्यों दिखनी  चाहिए. लोगों का कहना है की अगर सरकार भ्रष्टाचार ख़त्म कर दे तो  उग्रवाद, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि अपने आप दम तोड़ देंगे. भ्रष्टाचार और उग्रवाद के संबंधों का अध्ययन कर लिया जाय तो संभव है कि बहुत कुछ हल किया जा सकता है इससे अलग राय नहीं हो सकती है. ब्लॉगर श्री ओ पी पारीक जी नें अपने ब्लॉग में कहा था कि इस देश में जैसा जोर जुल्म खासकर दलितों और आदिवासियों के साथ होता रहता है उस से जूझने के लिए के हर विचारशील व्यक्ति को नक्सली होना चाहिए. नक्सली होने के अलावा उन लोगों के पास चारा ही क्या है. नौकरशाह, जंगलात विभाग, राजनीतिज्ञ और व्यापारी अदि सब मिल कर जिस तरह की शारीरिक और मानसिक हिंसा मजबूरों के साथ करते हैं उसका जवाब सिर्फ हिंसा है. नक्सलवाद सरकारी और गैर सरकारी अन्याय का मुंह तोड़ जवाब है. जाहिर है यह वर्तमान असह्य स्थिति को देखते हुए आक्रोश में व्यक्त किये गए उदगार हैं. सारी परिस्थिति पर शांत मन से गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. देखना है कि भारत के माओवादियों का उद्देश्य, तरीका और रास्ता क्या है. भूखें, नंगे लोगों का शोषण, उनकी पीड़ा एक यथार्थ है. इससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. समझने की ज़रुरत है कि नक्सलवादियों के पास गरीबी भुखमरी, शोषण मिटाने का क्या समाधान है. इनके तरीके पर विचार करना होगा. बन्दूक कि गोली के आतंक द्वारा न्याय दिलाने के तरीके को लेकर आशंकाएं होना स्वाभाविक है. कौन किसको और क्यों मारेगा. क्या मारने वाला चरित्रवान और मारा जाने वाला निश्चित तौर पर गुनाहगार ही होगा. यह सारी मारामारी किसी न्याय सम्मत क़ानून या ‘ जंगल के क़ानून के तहत होगी अथवा ‘ जिसकी लाठी उसकी भैंस ‘ के अंतर्गत अराजकता का वातावरण होगा. नक्सलियों का अब तक का ‘ ट्रैक रेकार्ड ‘, ज्यादा आशा का संचार नहीं करता है. तालिबानी शैली में आदिवासी फ्रैंसिस इन्दुवार का सिर धड से अलग कर दिया गया. ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को पटरी से उतार कर 165 मासूम यात्रियों की हत्या कर दी गई. मासूम रेल यात्रियों का क्या कसूर था, मेरे ख्याल में, ये मासूम रेल यात्री समाज विरोधी, कालाबाजारी या शोषणकर्ता नहीं थे. यह समझ से बाहर की बात है. रेल यात्रियों की हत्या करके किस प्रकार गरीबों के साथ न्याय होगा. क्या तालिबानी न्याय हमको स्वीकार्य होगा. क्या देश में जगल का क़ानून चलेगा. इस तरह का न्याय तो चम्बल के डाकू भी करते हैं. नक्सलवादी गरीबों और मासूमों की हत्या करते हैं और ऊपर से उनके हमदर्द होने का दम भरते हैं. दुकानदारों, मिल मालिकों, पूंजीपतियों से हफ्ता वसूल करते हैं. किस मायने में ये लोग जिहादी आतंकवादियों, चम्बल के डाकुओं, हफ्ता वसूल कर्ताओं, अपहरण कर्ताओं, लुटेरों से भिन्न हैं.

नक्सलवादी विकास के विरुद्ध हैं. ये लोकतांत्रिक तरीके से जनता का विश्वास कभी भी नहीं जीत सकते   हैं — – अन्याय और शोषण से लड़ने का नक्सलवादियों का यह कौन सा मौलिक और अनूठा  तरीका है.
नक्सलवादी स्कूलों, विद्युत् उत्पादन केन्द्रों, अस्पतालों, पुलों, सडकों को बम से उड़ा देते हैं. गरीबी मिटाने का यह कौन सा मौलिक और अनूठा
तरीका है . असल में  ये लोग लोकतंत्र को समाप्त कर, बन्दूक द्वारा, एक ऐसी तानाशाही व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं जिसमें किसी को उफ़ तक करने की आज़ादी नहीं होगी. ये लोग गाँधी के देश में माओ को लाना चाहते हैं. ये लोग बन्दूक और आतंक का सहारा इस लिए लेते हैं क्योंकि इन्हें पता है कि लोकतांत्रिक तरीके से ये जनता का विश्वास कभी भी नहीं जीत सकते हैं. लोकतंत्र में इन लोगों का विश्वास नहीं है. सिविल सोसाइटी, मीडिया में भी इनसे सहानुभूति रखने वाले समर्थक मौजूद हैं जो मानवाधिकार कार्यकर्ता के छद्मवेश में कार्य करते हैं. इन्हें नक्सलवादियों के शिकार लोगों के मानवाधिकारों की चिंता नहीं होती है. इनका काम है नक्सलवादी हत्यारों के मानवाधिकारों की चिंता करना, सिविल सोसाइटी में इनके लिए सहानुभूति और समर्थन जुटाना. इनमें से कुछ जाने पहचाने चेहरे हैं. डा. विनायक सेन चर्चा में अ चुके हैं. प्रसंगवश, सन 1976 में जब देश में इमरजेंसी लगी हुई थी मैं उच्चस्तरीय अनुसंधान के लिए जर्मनी में रहता था. इमरजेंसी से बचकर जर्मनी में शरण लिए हुए एक शीर्ष के माओवादी सिद्धांतकार से मेरी मुलाक़ात हुई. हम घनिष्ट मित्र बन गए. बाद में वे अमेरिका चले गए जहां दुर्भाग्यवश पिछले साल 80 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया. चे ग्वेवारा और माओ उनके आदर्श थे. उनसे मेरी लम्बी बहस होती थी. वे खूनी क्रान्ति की बात करते थे. वैकल्पिक व्यवस्था क्या होगी इसके बारे में उनके पास कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं थी.

माओवादी  विचारधारा का मुकाबला श्रेष्ठ लोकतंत्र की विचारधारा से करना होगा.

मेरे विचार में विचारधारा का मुकाबला एक श्रेष्ठ विचारधारा द्वारा ही किया जा सकता है.  माओवादी हिंसा से निपटने के लिए हिंसा का सहारा लेना होगा. Gun तंत्र का मुकाबला Gun से ही किया जा सकेगा. निर्दोष व निरीह नागरिकों को नक्सलवादियों के रहमो करम पर नहीं छोड़ा जा सकता. मेरी समझ में अनेक कमियों के बावजूद लोकतंत्र सबसे उत्तम व्यवस्था है. इसका कोई विकल्प नहीं है. मैं यह स्वीकार करता हूँ कि हमारा लोकतंत्र अनेक रूपों में विकृत है. यह धन और बाहुबलियों के कब्जे में है. चुनाव धर्म और जातियों के बीच होता है. राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है. अपराधी शासन की गद्दियाँ सुशोभित कर रहे हैं. हमारे लोकतंत्र में आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है. हमें अपनी समस्याओं का हल लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही ढूँढना होगा. विकल्प भयानक और वीभत्स है.

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