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घटक दलों का बिखराव – Jagran Junction Forum
वर्तमान गठबंधनों में टूट-फूट और तीसरे मोर्चे के गठन की संभावना
यूपीए-2 के घटक दलों के बिखराव से देश की राजनीति पर होने वाले प्रभावों के बारे में अनिश्चितता वातावारण का निर्माण हुआ है. देश में नए राजनैतिक समीकरणों की संभावनाएँ
तलाश की जा रही हैं. 2 G, 3 G, CWG और अब कोयलागेट घोटालों के कारण यूपीए- 2 की प्रतिष्ठा कीचड में है. जाहिर है ऐसे में अपनी सुरक्षा की खोज में चूहे डूबते जहाज को छोड़ कर भागने का प्रयत्न करेंगे. नए समीकरणों की संभावनाएं स्पष्ट परिलक्षित होती हैं. हमारे देश में राजनीति समाज सेवा, गरीबी हटाने और विकास का माध्यम न हो कर स्वार्थ साधन, पैसा कमाने का पारिवारिक व्यवसाय हो गया है. हमारे देश नें हमारे परंपरागत नैतिक, सामाजिक मूल्यों, आदर्शों का भारी अवमूल्यन हुआ है. तीसरे / चौथे मोर्चे का गठबंधन हमारे यहाँ एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है. गठबंधन टूटते व बनते बिगड़ते रहते हैं. मोर्चों का गठबंधन अवसरवाद की चरम पराकाष्ठा होती है. तीसरे मोर्चे की बात कोई पहली बार नहीं हो रही है. तीसरे और चौथे मोर्चे पहले भी कई बार बन चुके है और भ्रूणवस्था में ही काल कवलित भी हो चुके हैं. कारण है ऐसे गठबंधन विचारधारा, सिद्धांत या सेवाभाव से नहीं बनते हैं. इनका उद्देश्य होता है किसी भी प्रकार जातियों, धर्मों का अवसरवादी जिताऊ गठबंधन बनाकर, बाहुबल और धनबल के प्रयोग से सत्ता पर कब्ज़ा करना और तदुपरांत सत्ता का सुख भोगना. जनता की परेशानियों से इनका कोई सरोकार नहीं होता है.
राजनीति संभावनाओं का खेल है. अब जब कि सन 2014 के संसदीय निर्वाचन करीब आ रहे हैं, चुनाव जीतने वाले समीकरण बनाने के लिए जोड़ तोड़ शुरू हो जायेगी. विभिन्न राजनीतिक दल अपना अंकगणित ठीक करने के लिए अपने अपने कैलकुलेटर लेकर बैठ जायेंगे. नफा नुकसान का आकलन किया जाएगा. अपने अपने आकलन के अनुसार नए सहयोगी चुने जायेंगे, नए समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे. आवागमन प्रारम्भ हो जायेगा. आयाराम और गयाराम मुख्य भूमिका में होंगे. यूपीए-2 और एनडीए गठबंधनों में गहरी टूट-फूट की पूरी संभावना है. देश की राजनीति में तीसरे मोर्चे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके सफल होंने की संभावना क्षीण है. खुदरा दल तीसरा व चौथा अवसरवादी मोर्चा बनायेंगे लेकिन कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकेंगे. विपरीत विचारधारा या विचारधारारहित, सिद्द्धांत विहीन, आधारहीन अवसरवादी समझौते / गठबंधन न तो कभी सफल हो सकते हैं न कभी देश का भला ही कर सकते हैं. ये देश की राजनीति में बिखराव अवश्य पैदा करेंगे. उधर अरविन्द केजरीवाल भी ताल ठोंक कर अखाड़े में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि केवल 2 ही गठबंधन यूपीए और एनडीए स्थायी होंगे. अन्य दलों को इन्हीं के इर्द गिर्द एकत्रित होना होगा. हो सकता है आगे चलकर द्विपक्षीय दलीय व्यवस्था की नींव पड़े.
घटक दलों में बिखराव का संकेत सिर्फ दिखावा मात्र नहीं है, बल्कि यह 2014 के चुनावों में विभिन्न घटकों द्वारा अपने लिए सुरक्षित ज़मीन तलाशने की कोशिश है ताकि आगे आनेवाल दिनों में भी सत्ता का सुख भोगने को सुनिश्चित किया जा सके.
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