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पांच साल की तानाशाही /

निहितार्थ
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पांच साल की तानाशाही /
लूट की छूट /
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी

अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी जन लोकपाल आन्दोलन के विरोध में और भ्रष्टतंत्र के पक्ष में खड़े लोग लोकतंत्र को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं. कहा जा रहा है लोकतंत्र में वोट देने के बाद मतदाता को नींद की गोली खा कर पांच साल के लिए के सो जाना चाहिए. .इस बीच मतदाता को कोई सवाल जवाब नहीं करना चाहिए, न तो अपना दुःख दर्द बयान करना चाहिए और न रोना पीटना चाहिए सारे जुल्म, जोर,ज़बरदस्ती आँख मींचकर बर्दाश्त करना चाहिए. कहने का मतलब है कि हम जिन्हें चुनते हैं उन्हेंपांच साल तक लूटनें की खुली छूट होनी चाहिए. ऐसा नहीं करने से लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा. हम लोकशाही नहीं बल्कि पांच साल के लिए तानाशाही चुनते हैं. डा लोहिया का कहना था कि ‘ जिंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करती हैं ‘. डा. लोहिया की लोकतंत्र की अवधारण आज के तानाशाहों के मुकाबले कुछ अलग थी. कठिन समय में बरसाती मेढक की तरह कुछ ऐसे लोग अवतरित होते हैं जो अपने को बुद्धिजीवी साबित करने के अवसर की तलाश में रहते हैं. इन लोगों द्वारा हमें समझाया जा रहा है कि अपराधिक पृष्ठभूमि के जो लोग धनबल और बाहुबल के सहारे चुनकर आते हैं, जो संसद में अपना बहुमत साबित करने के लिए सांसदों की खरीद फरोख्त करते हैं उनकी कारगुजारियों से लोकतंत्र को खतरा नहीं होता है शायद बाहुबलियों, धनबलियों की बेजा कारगुजारियों से लोकतंत्र मजबूत होता है. इनके अनुसार जनता द्वारा आवाज़ उठाने से लोकतंत्र कमज़ोर होता है. अन्ना के जन लोकपाल आन्दोलन के समर्थन में जन भावनाओं के ज्वार का उभार बेवजह नहीं है. पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है. भ्रष्टाचार और अराजकता सहनशीलता कि सीमा लांघ चुके हैं. 2G और CWG घोटालों नें जन मानस को झकझोर कर रख दिया है. हालात बर्दाश्त के बाहर हो गए है. जन आक्रोश चरम सीमा पर है. एक ओर प्रधानमंत्री हैं जो अपने ईमानदार होने का ढोल पीटते नहीं अघाते हैं. वे आत्ममुग्ध हैं. उन्हें इस बात का कतई एहसास नहीं है कि जाने अनजाने वे चोरों के सरदार बन बैठे हैं. सुप्रीम कोर्ट की पहल से उनके मंत्रिमंडल के एक पूर्व सहयोगी और यू पी ए के दो संसद सदस्य तिहाड़ जेल की रोटियाँ तोड़ रहे है. इस बारे में प्रधानमंत्री द्वारा कोई कारवाई करने का तो कोई इरादा था. राजनीतिक शिष्टाचार / संवाद में गिरावट का यह आलम है कि शासक दल के प्रवक्ता अन्ना को सबसे भ्रष्ट व्यक्ति बताते हैं. उन्हें चुन चुन कर हिंदी में गालियाँ देते हैं और बाद में अपने व्यवहार के लिए इंग्लिश में खेद व्यक्त करते हैं. एक तरफ युवराज जो प्रधानमंत्री बनने के लिए प्रतीक्षारत हैं. चूंकि युवराज मैदान में उतर चुके हैं, इसलिए अडवानी जी को प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब छोड़ देना चाहिए. लोकसभा में लिखित टेक्स्ट से ‘ बुलेट ट्रेन की स्पीड ‘ से पढी गई अपनी स्पीच में युवराज नें बताया कि भ्रष्टाचार को मिटा पाना बहुत मुश्किल काम है. इसके लिए लोकपाल से काम नहीं चलने वाला है. उनके पास देश से भ्रष्टाचार मिटाने का शायद कोई गुप्त फार्मूला है, जिसे वे अभी जाहिर नहीं करना चाहते. इसे वे उचित समय आने पर ‘ मास्टर स्ट्रोक ‘ के तौर पर इस्तेमाल करेंगे.


सावधानी हटी, दुर्घटना घटी


यह कहना गलत है कि अन्ना का जन लोकपाल आन्दोलन लोकतंत्र विरोधी और संसदीय परम्पराओं के प्रतिकूल है. लोकतंत्र के बारे में मेरी अवधारण है कि अगर जनता किसी भी समय कुछ गड़बड़ पाती है तो उसे सवाल- जवाब कर सकती है.सांसदों और सरकार की जवाबदेही रोज़ की होती है. . जो लोग अन्ना को चुनकर आने की नसीहत देते हैं उन्हें चाहिए कि प्रधानमंत्री को सलाह दें कि वे राज्यसभा के पिछले दरवाज़े के बजाय जनता द्वारा सीधे चुनकर लोकसभा में आयें. जनता के प्रति प्रधानमंत्री की जवाबदेही सुनिश्चित कि जानी चाहिए. संसदीय प्रणाली को अन्ना के आन्दोलन से कोई खतरा नहीं है खतरा है तो उन लोगों से जो अपना बहुमत साबित करने के लिए सांसदों की खरीद फरोख्त करते हैं. सब तरह के भ्रष्टाचार को रोकने, भ्रष्टाचारियों के अन्दर दहशत पैदा करने के लिए एक कठोर जन लोकपाल क़ानून कि महती आवश्यकता है जिसमें कठोर कारावास का दंड और भ्रष्टाचारियों की गैर कानूनी तरीकों से अर्जित की गई चल अचल संपत्ति को ज़ब्त करने का प्रावधान हो. प्रश्न यह नहीं है कि जनलोकपाल क़ानून से भ्रष्टाचार रुकेगा कि नहीं. जब हम किसी संघर्ष में उतरते है तो समुचित अस्त्र- शस्त्र लेकर. जनालोकपाल कानून भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐसा ही एक अस्त्र है. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने और भ्रष्टाचारियों को कठोर दंड देने के लिए जहां एक कठोर लोकपाल क़ानून की महती आवश्यकता है, अन्ना के आन्दोलन में जनता को अँधेरे में रोशनी की किरण दिखाई देती है. राजनीति को स्वक्ष बनाने के लिए, उसे अपराधीकरण, धनबल और बाहुबल के चंगुल से मुक्ति दिलाने के लिए चुनाव प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है. मेरे विचार में ऐसा रास्ता ढूँढना चाहिए जिसमें विधानसभाओं और संसद में अपराधियों का प्रवेश रोका जा सके. ऐसी प्रणाली विकसित की जा सकती है जिसमें उन्हीं प्रत्याशियों को विजयी घोषित किया जाना चाहिए जो कुल पड़े मतों का 50 प्रतिशत से ज्यादा मत प्राप्त करते हों. 2G और CWG जैसे महाघोटाले / दुर्घटनाएं इसलिए संभव हुईं क्योंकि वोट देने के बाद जनता असावधान हो गई. सी ए जी कि रिपोर्ट, मीडिया के प्रयास और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से इन घोटालों का खुलासा संभव . हो सका. ट्रैफिक का नियम ‘ सावधानी हटी दुर्घटना घटी ‘ यहाँ भी लागू होता है. सावधान करने के लिए मीडिया / प्रबुद्ध जनता को Whistle blower की भूमिका अदा करने को तैयार रहना होगा. देखने में आया है कि घोटालों का पर्दाफाश करने वाले कुछ Whistle blowers को जान से हाथ धोना पड़ा है. Whistle blowers को सुरक्षा प्रदान करने की  ज़िम्मेदारी सरकार की बनती है

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