Menu
blogid : 143 postid : 351

मुसलमानो को आरक्षण बनाम वोट की राजनीति

निहितार्थ
निहितार्थ
  • 138 Posts
  • 515 Comments

मुसलमानो को आरक्षण बनाम वोट की राजनीति !!
देश के मुसलमानों का शैक्षणिक, आर्थिक एवं सामाजिक पिछडापन किसी से छिपा नहीं है. मुसलमान विकास की मुख्यधारा से अलग थलग है. सुनने और प्रिंट मीडिया में पढ़ने में आया है कि केन्द्रीय सरकार अपनी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मुसलमानों को आरक्षण देने पर विचार कर रही है. पिछड़ी जातियों को दिए जा रहे आरक्षण यानी ओबीसी कोटे में ही इनको हिस्सा देने पर विचार हो रहा है. आरक्षण सोशल इंजीनियरिंग द्वारा समाज में समता लाने और वंचितों को न्याय दिलाने का एक औजार है आरक्षण का उद्देश्य है हज़ारों साल से प्रताड़ित, शोषित, वंचित दलितों और पिछड़ों को समर्थ वर्ग के समकक्ष लाना जिसमें वे जीवन की प्रतिस्पर्धा में शामिल हो सकें. एक वर्ग का कहना है कि आरक्षण एक प्रतिगामी कदम है. इनका मानना है कि सरकारी नौकरियों, शिक्षण संस्थाओं में चयन प्रतिभा के आधार पर होना चाहिए. समाज में व्याप्त भारी विषमता, गरीबी और शोषण को देखते हुए संविधान निर्माताओं नें दलित पिछड़ों को न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया. इसकी एक समय सीमा भी निर्धारित की गई. यह अनिह्चित काल के लिए नहीं था. लेकिन इसका लाभ समूचे समुदाय को नहीं मिल सका. दलित और पिछड़े वर्ग जिनको पहले से ही आरक्षण मिला हुआ है, उनकी स्थिति में भी मामूली सा ही सुधार हुआ है. हुआ यह कि इन समुदायों के थोड़े से परिवार जिन्होनें पढ़ लिखकर ज़रूरी योग्यता हासिल कर ली, वही आरक्षण का लाभ उठाते रहे. समुदाय के बचे हुए बहुसंख्यकों के हालात में कोई भी सुधार नहीं आया है. होना यह चाहिए कि जिसको भी एकबार आरक्षण का लाभ मिल जाता है उसके बाल बच्चों को इसका लाभ नहीं मिलना चाहिए ताकि अधिक से अधिक नए वंचित लोगों को लाभ मिल सके. परिणामस्वरूप दलितों और पिछड़ों में भी एक धनबली, बाहुबली और समृद्ध वर्ग पैदा हो गया जो बहुसंख्यक वंचितों से अपने को श्रेष्ठ और अलग समझता है. मुसलमानों के आर्थिक, सामाजिक पिछड़ेपन और विकास की मुख्यधारा से कटे होने के कारणों पर कई दृष्टियों से विचार करना होगा. भारत का संविधान बिना किसी जाति पाति, धर्म, ऊँच नीच के भेदभाव के सब को बराबर अवसर प्रदान करता है. यह भी सत्य है कि इसके बावजूद मुसलमान पिछड़े हुए हैं. इसका कारण अन्यत्र ढूँढना होगा. किन्हीं कारणों से मुसलमानों नें आधुनिक तकनीकी, वैज्ञानिक, मेडिकल शिक्षा को नहीं अपनाया. जो शिक्षित हैं वे अच्छी स्थिति में हैं. में अनेक मुसलमान आई ए एस, आई पी एस, डाक्टरों, वकीलों, सेना और पुलिस अधिकारियों, राजनेताओं को जानता हूँ. देश के पूर्व राष्ट्रपति डा ए पी जे अब्दुलकलाम एक महान वैज्ञानिक और महान देशभक्त हैं. उद्योग में विप्रो के अज़ीम प्रेमजी भी मुसलमान हैं और उनकी गिनती देश के चोटी के उद्योगपतियों में होती है. यह बात ज़रूर है कि सभी क्षेत्रों में मुसलमानों की भागीदारी काफ़ी कम है. आरक्षण का लाभ उठाने के लिए भी शिक्षा की आवश्यकता तो होगी ही. मुसलमानों को चाहिए की अलग थलग रहने की मनोवृत्ति का परित्याग करें. दूर रह कर तमाशा देखने के बजाय देश की शैक्षणिक और विकास की मुख्य धारा में शामिल हो जांय हमें भी यह देख कर बेहद तकलीफ़ होती है कि देश की आबादी का इतना बड़ा हिस्सा ( लगभग 20 % ) ग़रीब और पिछड़ा हुआ है. देश के विकास में इनकी भागीदारी बेहद कम है. जिस देश की आबादी का इतना बड़ा हिस्सा पिछड़ा रहे, वह कभी विकसित नहीं हो सकता. रास्ता केवल एक है वह है आधुनिक शिक्षा को अपनाना. इसी रास्ते पर चलकर पिछड़ापन दूर किया जा सकता है. कोई शार्ट कट उपलब्ध नहीं है. मैं भोजपुरी क्षेत्र से हूँ. बचपन में हमारे माता पिता हमें सिखाते थे : ” बाप महतारी मरि जईहैं, भाय दिहैं अलगाय, बिना पढले नाहीं होइहै गुजारा ऐ पंचो “. यह बात हिन्दू और मुसलमान दोनों पर समान रूप से लागू होती है. जहाँ तक धार्मिक मुद्दों का सवाल है भारत में किसी की पहचान को कोई ख़तरा नहीं है. मुसलमानों को चाहिए कि वे आधुनिक शिक्षा के सहारे अपना पिछड़ापन दूर करें और मुल्क़ के विकास की मुख्य धारा में शामिल होकर अपना योगदान करें. देश का संविधान बिना किसी भेदभाव के. सभी को बराबर अवसर प्रदान करता है. अवसरों की भी कमी नहीं है. जहां आरक्षण का प्रावधान समाज में व्याप्त विषमता को दूर करना था वहीं राजनीतिज्ञों नें इसका एक नया दुरुपयोग ढूंढ लिया है वह है धर्म और जाति आधारित अपना वोट बैंक पक्का करना. देश की सबसे बड़ी राजनीतिक दल नें मुसलमानों में अपने खिसके हुए वोट बैंक को वापस लाने के लिए आरक्षण का दाना फेंकने की सोच रहा है. दूसरा तरीका जो अपनाया जा रहा है वह है हिन्दू आतंकवाद का भय दिखा कर मुसलमानों का भय दोहन करना और उनके वोट बैंक पर कब्ज़ा करना. यह काम दिग्विजय सिंह को दिया गया है. उनकी उल जलूल हरकतें इसी उद्देश्य से प्रेरित हैं. आरक्षण का दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है. समाज का जाति और धर्म के आधार पर विभाजन और सुदृढ़ हुआ है. दलित, पिछड़ों और मुसलमानों के अपने अलग अलग वोट बैंक बन गए हैं जिन पर अलग अलग पार्टियों का कब्ज़ा है. राजनीतिज्ञ वोट बैंक स्थापित करने की होड़ में अपनी नाजायज़ हरक़तों से बाज नहीं आने वाले हैं. केवल जनता ही इन्हें सबक सिखा सकती है. मैं उसदिन की प्रतीक्षा में हूँ जब हर देशवासी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई मस्तक ऊंचा करके भारतीय होने पर गर्व महसूस करेगा.

  

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh