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प्रधानमंत्री की तोतारटंत

निहितार्थ
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मुम्बई के गुनाहगारों को छोड़ेंगे नहीं(–पीएम, जुलाई 14 ):

प्रधानमंत्री की तोतारटंत

ओसामा बिन लादेन ‘ जी ‘ को पाकिस्तान में घुस कर मारा. आतंकवादियों को एक मज़बूत सन्देश भेजा कि बेगुनाहों की हत्या कर के वे बचने वाले नहीं हैं. यह भी सोचने की बात है कि, ईराक अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकवाद से लड़ने की ज़िम्मेदारी वहाँ की सरकारों की है,अमेरिका की नहीं. एक शांतिप्रिय लोकतांत्रिक देश भारत का मुकाबला इन आतंकग्रस्त देशों से नहीं किया जा सकता है क्या युवराज भारत को भी इसी रूप में देखना चाहते हैं. आतंकवादियों को हम क्या सन्देश दे रहे हैं. सुरक्षा एजेंसियां बड़े परिश्रम से उन्हें पकड़ती हैं. लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद न्यायपालिका मृत्युदंड देती है. उच्चतम न्यायालय फांसी की सजा बहाल रहती है. सरकार जेल में उनके पिकनिक मनाने का बंदोबस्त करती है. अफज़ल गुरू और कसाब का उदाहरण हमारे सामने है. आतंकवादियों को सन्देश जाता है कि आतंकवादी गतिविधियों में कितने ही मासूम लोगों की हत्या करो, भारत में तुम पूरी तरह सुरक्षित हो, तुम्हारा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है ऐसा लगता है, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार के पास न कोई नीति है और न नीयत है. सरकार नें  यह मान लिया है कि आतंकवाद को रोक पाना मुश्किल है. सरकार नें आतंकवाद के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है. सरकार अक्षम, असमर्थ और लाचार है. इच्छाशक्ति का नितांत अभाव है. सरकार की अपनी राजनीतिक मजबूरियाँ हैं. वोट बैंक खिसकने का डर सता रहा  है. इस कारण सरकार कोई सख्त कदम नहीं उठाना चाहती है. एक मजबूर सरकार देश को मजबूर बनाने पर तुली हुई है. इस सरकार से आतंकवाद को रोक पाने की अपेक्षा करना व्यर्थ है.  क्या हम सरकार की राजनीतिक मजबूरियों के दुष्परिणाम भोगने को अभिशप्त हैं.

          

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