Menu
blogid : 143 postid : 13

कर्मण्येवाधिकारस्ते

निहितार्थ
निहितार्थ
  • 138 Posts
  • 515 Comments

आजकल टीवी चैनलों पर साधू महात्माओं,बाबा जी लोगों, प्रवचनकर्ताओं और उपदेशकों की बाढ़ आयी हुयी है. बड़े – बड़े समागम / सत्संग आयोजित किये जाते है. भारी भीड़ एकत्र होती है. कहा जाता है कि ये लोग जनता में अध्यात्म का प्रचार और प्रसार कर रहे हैं. लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं. उन्हें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना सिखा रहे हैं. मुझे नहीं लगता है कि इन उपदेशों का श्रोताओं पर कोई असर पड़ता है और न तो कोई उपदेशकर्ताओं की बातों को निजी जीवन में अमल करता है. अगर रत्तीभर भी इन उपदेशों पर कोई अमल करता होता, तो समाज का ढांचा ही कुछ और होता. जितनी बेईमानी, हिंसा,लूटमार, घूसखोरी, धोखाधडी एक दूसरे के प्रति द्रोह, अविश्वास समाज में व्याप्त है, वह नहीं होता. ये समागम / सत्संग केवल मनोरंजन का साधन और समय बिताने का जरिया नज़र आते हैं. बाबा लोगों का व्यवसाय धड़ल्ले से चल रहा है. गोपाल दास नीरज के शब्दों में ‘ कदम-कदम पर मंदिर मस्जिद, कदम-कदम पर गुरुद्वारे, भगवानों की बस्ती हैं जुल्म बहुत इंसानों पर ‘. हरिवंश राय बच्चन जी ने भी कहा है ‘ मंदिर मस्जिद फूट डालते, मेल कराती मधुशाला ‘. इन कथनों का उद्देश्य है, बाबा लोगों के उपदेशों, प्रवचनों और धर्म की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगाना.
इन उपदेशों के अनुसार मानव जीवन का उद्देश्य है मोक्ष प्राप्त करना, भगवान् को पाना इत्यादि, इत्यादि.. .
भगवान् को पाने के लिए माला फेरने, मंदिर में जाकर घंटा घड़ियाल बजाने, ध्यान करने की सलाह दी जाती है. हमें मालूम नहीं कि भगवान् हैं कि नहीं. कहा जाता है कि भगवान हमें मृत्युलोक में इस धरती पर भेजते हैं. मान लो अगर भगवान् हैं तो वह क्यों चाहेंगे कि जिसको उन्होंने धरती पर कुछ कर्तव्य करने को भेजा वह धरती पर आते ही उनको वापस प्राप्त करने की तैयारी शुरू कर दे. अगर ऐसा था तो वह मानव को धरती पर भेजते ही क्यों. हमारे धरती पर आने का उद्देश्य कुछ और है, भगवान् का नाम जपना, उनकी प्रशस्ति गाना, मंदिरों में जाकर घंटा घड़ियाल बजाना, प्रसाद चढाकर भगवान् की चापलूसी करना नहीं. कहीं कहीं तो बड़े मंदिरों में करोडों रूपये मूल्य का सोना चढ़ाया जाता है. भगवान् के लिए इस सोने की क्या उपयोगिता है, यह समझ से बाहर की बात है. चापलूसी और घूस देकर भगवान् कभी प्रसन्न नहीं हो सकते. इतनी समझ तो भगवान् को है, कि क्या सही है और क्या गलत है. भगवान् को बेवकूफ समझने की भूल नहीं करनी चाहिए. भगवान के बारे में हमारी परिकल्पना एक ऐसी शक्ति की है जो सृष्टि का निर्माण और उसका परिचालन करता है. ऐसी शक्ति राग द्वेष से परे, न्यायप्रिय ही होगी. चापलूसी करके, उसका गुणगान करके उसको हम उसे खुश नहीं कर सकते. कृष्ण नें गीता में कहा है ‘ कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन ‘. हमारा अधिकार कर्म तक ही सीमित है. हमें अपना कर्म करना चाहिए और फल की इच्छा नहीं करना चाहिए. फल का निर्धारण कर्म के अनुसार ही होता है. इसमें दखल नहीं दिया जा सकता. भगवान भी इसमें दखल नहीं देगा क्योंकि अपने स्वयं के बनाये नियम को नहीं तोड़ सकता, अन्यथा उसकी विश्वसनीयता खतरे में पड़ जायेगी. गोस्वामी तुलसी दास नें भी रामायण में लिखा है’ करम प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करा सो तस फल चाखा ‘, और ‘ सकल पदारथ हैं जग माहीं, करमहीन नर पावत नाहीं ‘. निष्कर्स यह है क़ि बिना कर्म / प्रयत्न के कुछ भी प्राप्त नहीं होता है. अपने कर्म का फल तो भोगना ही पड़ेगा. अच्छा या बुरा फल कर्मानुसार यहीं पर , इसी जनम में भोगना पड़ता है. भगवान् को खुश करने की कोशिशें आडम्बर और पाखण्ड से बढ़कर कुछ नहीं हैं. अब प्रश्न यह उठता है कि कर्म क्या है. इस दुनिया में भगवान् नें हमें किस उद्देश्य से भेजा है. हमारा कर्तव्य क्या है. सभी धर्मों ने भगवान् , ईश्वर, अल्लाह, खुदा, गाड को एक ऐसी अदृश्य शक्ति के रूप में स्वीकार किया है, जिसने सृष्टि का सृजन किया. धरती, नदी पहाड़, वनस्पति,पशु पक्षी और इंसान को बनाया. भगवान् ने यह सब बनाया है, तो वह उसका विनाश क्यों चाहेंगे. किसी को नुकसान पहुंचाने में उनको क्या मिलेगा. वह किसी का बुरा क्यों चाहेंगे. भगवान् का काम है निर्माण करना, विनाश नहीं.
भगवान को एक डरावनी / आतंकी स्वरूप में प्रस्तुत किया जाता है. भगवान एक कल्याणकारी शक्ति हैं.
वह इतना तो अवश्य चाहेंगे कि हम दुनिया में अपने कर्तव्य का पालन करें, अपना कर्म करें. मेरी समझ से भगवान नें
जिस सृष्टि का सृजन किया है, उसको सजा संवार के, बचा के रखना हमारा एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है. सत्कर्मों में, हम जिस व्यवसाय में भी हैं, कुशलता,ईमानदारी परिश्रम और लगन के साथ काम करना. इसके अलावा दीन दुखियों, बीमारों, गरीबों की सेवा करना, हर ज़रूरतमंद की सहायता करना, लोगों के दुःख दर्द दूर करना, सबकी इज्ज़त करना, सबसे मेल मिलाप से भाईचारे से रहना,ये हैं हमारे कर्म , जो कर्म निषेध की श्रेणी में आयेंगे वह हैं किसी को धोखा नहीं देना, परेशान नहीं करना, किसी के प्रति हिंसा नहीं करना, चोरी नहीं करना, किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना, झूठ नहीं बोलना, ये निषिद्ध कर्म माने जायेंगे.
अगर हम अपने कर्तव्यों और सत्कर्मों का पालन करेंगे, तो भगवान अवश्य प्रसन्न होंगे. दुःख की बात है कि उपदेशक लोग इन बातों पर ध्यान न देकर, लोगों को अकर्मण्य बनाते हैं. लोगों को गलत सलाह देते हैं कि भगवान् की चापलूसी करने से मोक्ष / मुक्ति मिलेगी. कोई भी हमें सृष्टि के प्रति हमारे कर्तव्यों के लिए प्रेरित नहीं करता है.

Tags:         

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh